विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम्।

(अर्थात्: विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है, पात्रता से धन आता है, धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है।)

उपर्युक्त श्लोक यह सन्देश प्रतिपादित करता है कि शिक्षा मनुष्यों में विभिन्न गुणों को विकसित करती है। जिससे व्यक्ति जीवन में यश, कीर्ति को प्राप्त करता है। शिक्षा के माध्यम से इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गंगाशील महाविद्यालय की स्थापना की गई है।

महाविद्यालय का उद्देश्य ऐसे प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को तैयार करना है जो अपने वातावरण के साथ मिलकर सामाजिक परिवेश के प्रति जागरूक, अनुशासित और भविष्य में परिवर्तित चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो। एक संस्था के रूप में हम ज्ञान के साथ-साथ मानवीय गुणों के विकास पर बल देते हैं।

वर्तमान परिस्थितियों में किस प्रकार की शिक्षा प्रदत्त की जाये इस दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए महाविद्यालय नवीन शिक्षण तकनीकि, पाठ्य सहगामी क्रियाओं के माध्यम से विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कर रहा है। साथ ही विभिन्न विषयों में सेमीनार का आयोजन महाविद्यालय में होता है। जिसमें देश के प्रत्येक कोने से शिक्षाविद् प्रतिभाग करते हैं और शिक्षा में सम्भावित परिवर्तनों की रूप-रेखा विद्यार्थियों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। गंगाशील महाविद्यालय विद्यार्थियों का शारीरिक, मानसिक व नैतिक विकास करने के लिये संकल्पबद्ध है।

डाॅ. सीमा चतुर्वेदी
गंगाशील महाविद्यालय, फैजुल्लापुर, नवाबगंज, बरेली
( प्राचार्या)